मन्दिर श्री लाड़ली जी महाराज बरसाना

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मन्दिर श्री लाड़ली जी महाराज बरसाना, उत्तर प्रदेश के मथुरा शहर से 43 किलोमीटर दूर भानुगढ़ ब्रह्मांचल पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर न केवल एक आध्यात्मिक शरणस्थली है, बल्कि भगवान श्री कृष्ण और उनकी अल्हादिनी शक्ति श्री राधा रानी  के बीच शाश्वत प्रेम का भी प्रमाण है। इस मंदिर को बरसाना की लाडली मंदिर और श्री जी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह श्री राधा रानी  के भक्तों का सबसे प्रिय मंदिर है, जो इस स्थान पर आकर खुद को बहुत धन्य महसूस करते हैं। भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी को यहाँ विशेष महोत्सव मनाया जाता  है क्योंकि इसी दिन श्री राधा रानी का प्राकट्य  हुआ था और इसी दिन राधाष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है। मुख्यतः लठमार होली एवं राधाष्टमी यहाँ के सबसे बड़े त्यौहार हैं ।

मन्दिर का इतिहास

मन्दिर श्री लाड़ली जी महाराज बरसाना में जिस श्री विग्रह का आप दर्शन कर रहे हैं वह प्रकट दर्शन है जिसे बृजाचार्य नारदावतार श्रील नारायणभट्ट गोस्वामी जी महाराज ने इसी ब्रह्मांचल पर्वत से सम्वत १६२६ सन १५६९ में आषाड शुक्ल द्वितीया को प्रकट किया है एवं इसी दिन श्री लाड़लीलाल जू महाराज एवं श्री स्वामी जी महाराज का जन्मोत्सव मनाया जाता है.

समाज गायन श्रंखला

बरसाना में ब्रह्मांचल पर्वत पर स्थित श्रीलाडिलीजी मंदिर और नंदगांव में नंदीश्वर पर्वत पर स्थित नन्दबाबा मंदिर दोनों की एक साझी परंपरा है जिसका निर्वहन साढ़े पांच सौ वर्ष से किया जा रहा है। थोड़ी चर्चा होली के समाज गायन की परंपरा पर। बसंत पंचमी से लेकर धुलेंडी तक यहाँ होली का उल्लास रहता है इसीलिए कहा जाता है कि ब्रज में फाल्गुन चालीस दिन का होता है। बसंत पंचमी के दिन से दोनों मंदिरों में आधिकारिक रूप से होली की शुरुआत होती है। होली के डांडे रोप दिए जाते हैं और समाज गायन का क्रम शुरू हो जाता है। इसी दिन से मंदिरों में गुलाल उड़ने लगता है, पखावज बजने लगती है और ढप पर थाप पड़ने लगती है। बसंत पंचमी के दिन आदि रसिक कवि जयदेव के पद ‘ललित लवंग लता परिसीलन, कोमल मलय शरीरे’ से समाज गायन शुरू होता है। इसी क्रम में हरि जीवन का पद ‘श्री पंचमि परम् मंगल दिन, मदन महोत्सव आज बसंत बनाय चलीं ब्रज सुन्दरि, लै लै पूजा कौ थार’ का गायन होता है। हित हरिवंश का पद ‘प्रथम समाज आज वृन्दावन, विहरति लाल बिहारी, पांचें नवल बसन्त बंधावन, उमगि चलें ब्रजनारि’ गाया जाता है। कविवर चतुर्भुज के पद ‘गावत चलीं बसन्त बंधावन, नंदराय दरबार, बानिक बन बन चौख मौख सौं, ब्रजजन सब इकसार’ का गायन वातावरण में बसन्त की मादकता भर देता है। इसी क्रम में चतुर दास, वृन्दावन दास, मुरारी दास, माधौ दास, नन्द दास, गरीब दास, गोविन्द, परमानंद दास, गजाधर, चतुर्भुज, हरिवंश, सदानन्द, नागरीदास और कटहरिया आदि रसिकों के पदों का गायन चलता रहता है। महाशिव रात्रि, बरसाना से नंदगांव के लिये होली का आमंत्रण जाना, पांडे लीला, बरसाना की लठामार होली और बरसाना की सखियों द्वारा नंदगांव में फगुआ मांगने जाना आदि लीलाओं का चित्रण इन्ही पदों के गायन से होता रहता है। धुलेंडी के दिन ‘जीवेगो सो खेलेगो, ढप धर दे यार गई परकी’ के गायन के साथ चालीस दिवसीय समाज गायन का यह क्रम पूर्ण हो जाता है।

श्री राधाष्टमी महोत्सव

राधाष्टमी भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इस दिन कृष्ण प्रिया राधा जी का जन्म हुआ था। राधाष्टमी के अवसर पर बरसाना में लाखों करोडों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं। बरसाना ही श्री राधा जी की जन्मस्थली है। जिस पर्वत पर श्री राधा रानी विराजमान हैं उस पर्वत को ब्रह्मांचल पर्वत के नाम से जाना जाता है। बरसाना में राधा-कृष्ण भक्तों का सालों भर तांता लगा रहता है। श्रद्धालु इस दिन बरसाना की ऊँची पहाड़ी पर स्थित गहवर वन की परिक्रमा करते हैं तथा लाडली जी राधारानी के मंदिर में दर्शन कर खुशी मनाते हैं। दिन के अलावा पूरी रात बरसाना में गहमागहमी रहती है। विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक आयोजन किए जाते हैं। धार्मिक गीतों और कीर्तन के साथ उत्सव प्रारम्भ होता है। वैष्णव जन इस दिन बहुत ही श्रद्धा और उल्लास के साथ व्रत उत्सव मनाते हैं।

विश्वप्रसिद्ध लठमार होली

फागुन में ब्रज में चालीस दिन का होली के रूप में अनुराग महोत्सव बड़े ही उत्साह के साथ धूमधाम से मनाया जाता है। ब्रज में होली की विधिवत शुरुआत बरसाना-नन्दगांव की लठामार होली से ही होती है और दाऊजी के हुरंगा के साथ ‘ढप धर दै यार गयी पर की…।’ के गायन के साथ संपन्न होती है।

हर किसी यह इच्छा रहती है कि जीवन में एक बार एक झलक बरसाना नंदगांव की लठमार होली की मिल जाए। जो एक बार नंदगांव-बरसाने के हुरियारे और हुरियारिनों के बीच होने वाली लठमार होली की झलक पा लेता है वह ब्रज के इस अनुपम प्रेम में सराबोर हो अपनी सुधबुध खो बैठता है .

नंदगाँव बरसाना के हुरियारे और हुरियारिनों के बीच लठामार होली शुरू होने से पहले गाली युक्त हंसी-ठिठोली के ब्रज के परम्परागत नृत्य का वर्णन मिलता है। हुरियारिनों के लाठी के तेज प्रहारों से बचाव के लिए हुरियारे ढाल, डंडे लेकर आते हैं. एवं ब्रजगोपियों को ही केवल लठमार होली खेलने का अधिकार है .

श्री धाम बरसाना एक परिचय

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मंदिर श्री लाड़ली जी महाराज

श्रीवृषभानु जी की राजधानी होने के कारण बरसाने का प्राचीन नाम श्री वृषभानुपुर था। वाराहपुराण एवं प‌द्मपुराण में ऐसी कथा आती है कि ब्रहमाजी ने तपस्या के बल पर श्रीकृष्ण से लीला-दर्शन का वरदान प्राप्त किया था। फलस्वरूप लीला दर्शनार्थ वे ब्रहमांचल के रूप में यहां स्थापित इस पर्वत को वृहत्सानु पर्वत के नाम से हुए। इसलिए हैं। ब्रहमाजी के चार्तुमुखी स्वरूप के समान यहां वृहत्सानु की चार चोटियां हैं-

भानुगढ़, दानगढ़, विलासगढ़ तया मानगढ़।

मन्दिर में श्री मानबिहारी लाल के दर्शन हैं। मोरकुटी पर श्री श्यामसुन्दर ने मोर बनकर नृत्य करते हुए अपनी श्यामा जू को रिझाया था। गहवर वन की सघन निकुंजें श्री राधा-माधव की सरस केलि की सहज नियोजिका है। इसके निचले भाग में रासमण्डल है, राधा सरोवर है, शंख का चिन्ह दर्शन है और महाप्रभु बल्लभ जी की बैठक है। वहां पर श्री गोपाल जी के दर्शन हैं। यह सम्पूर्ण ब्रजभूमि स्वयं श्रृंगाराख्य भवरूपा है। तत्स्वरूपा होने के साथ उस परमभाव की भांति उन्मादना उत्पन्न करने में भी पूरी तरह समर्थ है। तभी तो स्वयं रसराज यहां इस राधिका-केलि-महल की किंकरियों के समान महाभावस्था नन्दिनी की कृपा की अभिलाषा लिए सदा रहते हैं-

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राधा रानी श्रीकृष्ण की आह्लादिनी शक्ति एवं निकुंजेश्वरी मानी जाती हैं। इसलिए राधा किशोरी के उपासकों का यह अतिप्रिय तीर्थ है। बरसाना की पुण्यस्थली बड़ी हरी-भरी तथा रमणीक है। इसकी पहाड़ियों के पत्थर श्याम तथा गौरवर्ण के हैं, जिन्हें यहाँ के निवासी कृष्ण तथा राधा के अमर प्रेम का प्रतीक मानते हैं। बरसाना से 4 मील पर नन्दगांव है, जहां श्रीकृष्ण के पिता नंद का घर था। यहाँ भाद्र, शुक्ल अष्टमी से चतुर्दशी तक बहुत सुन्दर मेला होता है। इसी प्रकार फाल्गुन, शुक्ल अष्टमी, नवमी एवं दशमी को आकर्षक लीला होती है।

जानें राधा रानी से जुड़ी कुछ रोचक कथाएं

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उपनिषद और पुराणों से 

जिस प्रकार श्रीकृष्ण आनंद का विग्रह हैं, उसी प्रकार राधा प्रेम की मूर्ति हैं। अत: जहां श्रीकृष्ण हैं, वहीं राधा हैं और जहां राधा हैं, वहीं श्रीकृष्ण हैं। कृष्ण के बिना राधा या राधा के बिना कृष्ण की कल्पना के संभव नहीं हैं। इसी से राधा ‘महाशक्ति’ कहलाती हैं। राधोपनिषद में राधा का परिचय देते हुए कहा गया है-

कृष्ण इनकी आराधना करते हैं, इसलिए ये राधा हैं और ये सदा कृष्ण की आराधना करती हैं, इसीलिए राधिका कहलाती हैं। ब्रज की गोपियां और द्वारका की रानियां इन्हीं श्री राधा की अंशरूपा हैं। ये राधा और ये आनंद सागर श्रीकृष्ण एक होते हुए भी क्रीडा के लिए दो हो गए हैं। राधिका कृष्ण की प्राण हैं। इन राधा रानी की अवहेलना करके जो कृष्ण की भक्ति करना चाहता है, वह उन्हें कभी पा नहीं सकता।’

निष्काम प्रेम और समर्पण

राधा का प्रेम निष्काम और नि:स्वार्थ है। वह श्रीकृष्ण को समर्पित हैं, राधा श्रीकृष्ण से कोई कामना की पूर्ति नहीं चाहतीं। वह सदैव श्रीकृष्ण के आनंद के लिए उद्यत रहती हैं। इसी प्रकार जब मनुष्य सर्वस्व समर्पण की भावना के साथ कृष्ण प्रेम में लीन होता है, तभी वह राधाभाव ग्रहण कर पाता है। कृष्ण प्रेम का शिखर राधाभाव है। तभी तो श्रीकृष्ण को पाने के लिए हर कोई राधारानीका आश्रय लेता है।

महाभावस्वरूपात्वंकृष्णप्रियावरीयसी।

प्रेमभक्तिप्रदेदेवि राधिकेत्वांनमाम्यहम्॥

 

  • स्कंद पुराण के अनुसार राधा श्रीकृष्ण की आत्मा हैं। इसी कारण भक्तजन सीधी-साधी भाषा में उन्हें ‘राधारमण’ कहकर पुकारते हैं।
  • पद्म पुराण में ‘परमानंद’ रस को ही राधा-कृष्ण का युगल-स्वरूप माना गया है। इनकी आराधना के बिना जीव परमानंद का अनुभव नहीं कर सकता।
  • भविष्य पुराण और गर्ग संहिता के अनुसार, द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण पृथ्वी पर अवतरित हुए, तब भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन महाराज वृषभानु की पत्नी कीर्ति के यहाँ भगवती राधा अवतरित हुई। तब से भाद्रपद शुक्ल अष्टमी ‘राधाष्टमी’ के नाम से विख्यात हो गई।
  • नारद पुराण के अनुसार ‘राधाष्टमी’ का व्रत करने वाला भक्त ब्रज के दुर्लभ रहस्य को जान लेता है।
  • पद्म पुराण में सत्यतपा मुनि सुभद्रा गोपी प्रसंग में राधा नाम का स्पष्ट उल्लेख है। राधा और कृष्ण को ‘युगल सरकार’ की संज्ञा तो कई जगह दी गई है।

राधा जी की सखियाँ

धार्मिक कथाओं में राधा जी के साथ ही उनकी आठ सखियों का भी उल्लेख आता है। इनके नाम हैं-

  1. ललिता
  2. विशाखा
  3. चित्रा
  4. इन्दुलेखा
  5. चम्पकलता
  6. रंगदेवी
  7. तुंगविद्या
  8. सुदेवी

भागवत में राधा

  • भागवत में भी राधा का प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं है लेकिन परोक्ष रूप से राधा नाम छिपा हुआ है। भागवत में कहा गया है – ‘गोपियाँ आपस में कहती हैं- अवश्य ही सर्वशक्तिमान भगवान श्रीकृष्ण की यह आराधिका होगी इसीलिए इस पर प्रसन्न होकर हमारे प्राणप्रिय श्याम ने हमें छोड़ दिया है और इसे एकान्त में ले गए हैं। यह गोपी और कोई नहीं बल्कि राधा ही थीं। श्लोक के ‘आराधितो’ शब्द में राधा का नाम भी छिपा हुआ है।
  • भागवत में महारास के प्रसंग में इस श्लोक में वर्णन है-
‘तत्रारभत गोविन्दो रासक्रीड़ामनुव्रतै।

स्त्रीरत्नैरन्वितः प्रीतैरन्योन्याबद्ध बाहुभिः।।

 

वसन्त पंचमी से शुरु हो जाता है समाज गायन

बरसाना में ब्रह्मांचल पर्वत पर स्थित श्रीलाडिलीजी मंदिर और नंदगांव में नंदीश्वर पर्वत पर स्थित नन्दबाबा मंदिर दोनों की एक साझी परंपरा है जिसका निर्वहन साढ़े पांच सौ वर्ष से किया जा रहा है। थोड़ी चर्चा होली के समाज गायन की परंपरा पर। बसंत पंचमी से लेकर धुलेंडी तक यहाँ होली का उल्लास रहता है इसीलिए कहा जाता है कि ब्रज में फाल्गुन चालीस दिन का होता है। बसंत पंचमी के दिन से दोनों मंदिरों में आधिकारिक रूप से होली की शुरुआत होती है। होली के डांडे रोप दिए जाते हैं और समाज गायन का क्रम शुरू हो जाता है। इसी दिन से मंदिरों में गुलाल उड़ने लगता है, पखावज बजने लगती है और ढप पर थाप पड़ने लगती है। बसंत पंचमी के दिन आदि रसिक कवि जयदेव के पद ‘ललित लवंग लता परिसीलन, कोमल मलय शरीरे’ से समाज गायन शुरू होता है। इसी क्रम में हरि जीवन का पद ‘श्री पंचमि परम् मंगल दिन, मदन महोत्सव आज बसंत बनाय चलीं ब्रज सुन्दरि, लै लै पूजा कौ थार’ का गायन होता है। हित हरिवंश का पद ‘प्रथम समाज आज वृन्दावन, विहरति लाल बिहारी, पांचें नवल बसन्त बंधावन, उमगि चलें ब्रजनारि’ गाया जाता है। कविवर चतुर्भुज के पद ‘गावत चलीं बसन्त बंधावन, नंदराय दरबार, बानिक बन बन चौख मौख सौं, ब्रजजन सब इकसार’ का गायन वातावरण में बसन्त की मादकता भर देता है। इसी क्रम में चतुर दास, वृन्दावन दास, मुरारी दास, माधौ दास, नन्द दास, गरीब दास, गोविन्द, परमानंद दास, गजाधर, चतुर्भुज, हरिवंश, सदानन्द, नागरीदास और कटहरिया आदि रसिकों के पदों का गायन चलता रहता है। महाशिव रात्रि, बरसाना से नंदगांव के लिये होली का आमंत्रण जाना, पांडे लीला, बरसाना की लठामार होली और बरसाना की सखियों द्वारा नंदगांव में फगुआ मांगने जाना आदि लीलाओं का चित्रण इन्ही पदों के गायन से होता रहता है। धुलेंडी के दिन ‘जीवेगो सो खेलेगो, ढप धर दे यार गई परकी’ के गायन के साथ चालीस दिवसीय समाज गायन का यह क्रम पूर्ण हो जाता है।

ब्रह्मांचल पर्वत से प्रकट हुई श्री वृषभानु नंदिनी

श्रील नारायण भट्ट गोस्वामी जी महाराज करीब साढ़े पांच सौ वर्ष पहले ब्रज में आये थे, उस समय समूचा ब्रज लुप्त था। राधारानी के परम भक्त श्रील् नारायण भट्ट जी एवं गोस्वामी श्री नारायण दास श्रोत्रिय (स्वामी जी महाराज) ने ब्रहमांचल पर्वत से सम्वत १६२६ सन १५६९  वर्ष पहले वृषभानु नंदिनी की कृपा से उनके दिव्य श्री विग्रह का प्राकट्य किया था। उन्होंने अपने परम शिष्य श्री नारायण स्वामी जी को श्री विग्रह  की सेवा पूजा का भार सौंपा था। तभी से गोस्वामी श्री नारायण दास श्रोत्रिय जी के वंशज बरसाना के गोस्वामी जन श्री राधारानी की पूजा करते आ रहे हैं।

अकबर सहित कई मुगलकालीन राजाओं ने कराया या मंदिर का निर्माण

उस समय मुगल काल के लक्खा बंजारे ने सर्वप्रथम राधारानी के लिए भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। अकबर की हिंदू पत्नी जीचा बाई के कहने पर राजस्व मंत्री टोडरमल ने दूसरे मंदिर का निर्माण करवाया। इसके बाद रीवा व ग्वालियर राज्यों के राजाओं ने भी मंदिर का निर्माण करवाया। कुछ वर्ष पश्चात् जब यह मंदिर खंडहर होने लगे तो करीब सौ वर्ष पहले किशोरी जी के परम सेवक श्री हरगुलाल सेठ ने उन्हीं में से एक प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार कर नया रूप दिया। आज प्रिया प्रियतम उसी पांचवें मंदिर में विराजमान होकर भक्तों पर अपनी कृपा बरसा रहे हैं। दूर से देखने में यह मंदिर किसी राजमहल से कम नहीं लगता है। सभी धर्मों का समावेश इस मंदिर में छिपा है। लाडिली जी मंदिर जाने के लिए तीन मार्ग सीढ़ियों सहित एक अन्य मार्ग गाडियों का भी है। श्रीजी मंदिर में श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए रोप वे का निर्माण कार्य भी शुरू हो चुका है।

राधा रानी मंदिर बरसाना

राधा रानी मंदिर बरसाना
  • राधा रानी मंदिर बरसाना

    राधा रानी मंदिर बरसाना
  • राधा रानी मंदिर बरसाना

    राधा रानी मंदिर बरसाना
  • Sri Radha Rani Mandir

    Sri Radha Rani Mandir
  • Radha Rani Temple | बरसाना मंदिर

    Radha Rani Temple | बरसाना मंदिर

बरसाना की लठामार होली की कुछ झलकें